हरिनाम की शक्ति - ये कहानी श्रीमद भागवत की है जब कान्यकुब्ज नगर में ब्राह्माण कुल में उत्पन्न अजामिल का जन्म हुआ। शुरुवाती जीवन में वो ब्राम्हण के क्रियाकलापों में लीन कर्मकांडों को करता था परंतु जीवन एवं कर्म की विडम्बना से एक दिन उसकी भेंट किसी वैश्या नर्तकी से हुई जिसके साथ वो पति-पत्नी के रूप में रहने लगा। घर पर उसके पूर्व विवाहित ब्राम्हण कुलोत्पन्न सुंदर पत्नी के होने के बावजूद उस वैश्या के साथ ज्यादा समय गुजरने लगा तथा उसे हर प्रकार से संतुष्ट करने के लिए अपने ब्रम्हणोचित कर्मों को भूलने लगा। अन्य परिवार के समान पिता का विरासत से मिले धन संपत्ति को उस वैश्या को संतुष्ट करने के लिए खर्च करता गया।
वो ईश्वरीय कर्मो को भूलने लगा तथा वेश्या के संसर्ग में रहने से समाज में उसका मान सन्मान नही रहा। अत्यधिक संभोग आदि में लिप्त होकर मोहवश अपने जीवन का उद्देश्य भूल चुका था। इसी तरह वो अपने बच्चों के साथ रहने लगा। दैव कृपा से एक दिन कुछ संतों का एक काफिला अजामिल के नगर से जा रहा था। यहां पर रात्रि हो गई तो साधुओं ने अजामिल के घर के सामने डेरा जमा दिया। रात में जब अजामिल आया तो उसने साधुओं को अपने घर के सामने देखा। इस दौरान अजामिल का एक कनिष्ठ पुत्र का जन्म होने वाला था जिससे साधुओं ने कहा कि वह अपने होने वाले पुत्र का नाम नारायण रख ले। अजामिल की पत्नी को पुत्र पैदा हुआ तो अजामिल ने उसका नाम नारायण रख लिया और नारायण से प्रेम करने लगा। इस तरह कई वर्ष बीत चुका था।
अब उसके मृत्यु का समय आ गया तो कुछ यमदूत उसके प्राण को निकाल ने लिए उसके समीप उपस्थित हुए। अपने कनिष्ठ पुत्र के रखे नारायण नाम से वर्षों तक पुकार ने के कारण विष्णु दूत भी अजामिल की सुरक्षा के लिए उसके समीप उपस्थित हो गए। वास्तव में अजामिल का प्रतिदिन अपने कनिष्ठा पुत्र का नारायण नाम से संबोधन श्री भगवान नारायण को सोचकर नही किया करता था फिरभी नारायण का नाम श्रीमन नारायण से भिन्न न होने के कारण अभिन्न था। इसीलिए जब भी हम श्री नारायण या श्री कृष्ण के नाम का स्मरण या उच्चारण करते है तो तत्काल भगवान से सम्पर्क करते है। इसी प्रकार श्री कृष्ण नाम श्री कृष्ण से भिन्न नही है।
इस संदर्भ में मशहूर ब्रिटिश एस्ट्रोलॉजर allan leo का भी यही कहना था कि जब हम सोते हुए किसी व्येक्ति को उसके असली नाम से पुकार ते है तो सोता हुआ व्येक्ति तुरंत उठ जाता है। इससे इस बात का प्रमाण मिलता है की नाम और व्येक्ति में कोई भिन्नता नही होती ठीक इसी तरह ही ईश्वर के नाम और ईश्वर से भिन्नत नही होती। वास्तव में श्री भगवान को ध्यान में रखकर संबोधित न करने पर भी अजामिल अपने प्रतिनियत कनिष्ठ पुत्र को नारायण नाम से संबोधित करते रहने से वो श्रीमन नारायण के कृपादृष्टि को पा चुका था। उसके जीवन के पूर्व पाप धुल चुके थे। श्री हरि के प्रतिदिन किंचित प्रयासों से उच्चरित नाम व स्मरण मात्र से ही कठिन और बड़े से बड़े पाप से मुक्ति का मार्ग प्रशस्थ हो जाता है। इसी रहस्य और ज्ञान से विदित होकर यमदूत अपने यमलोक की और प्रस्थान कर चुके थे तथा पाप कर्मों से पूर्व में लिप्त होकर भी अजामिल सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु दूतों के साथ श्री विष्णु के परमधाम श्री वैकुण्ठ को चले गए। इस तरह अंततः अजामिल को भगवान के पवन नाम के सहारे से वैकुण्ठ की प्राप्ति हुई।
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